Add To collaction

लेखनी कहानी -05-Jan-2023 (23)एक ही थाली के चट्टे बट्टे ( मुहावरों की दुनिया )




शीर्षक = एक ही थाली के चट्टे बट्टे



अगला दिन, आज फिर आशीष की आँख सवेरे ही खुल गयी थी और साथ ही साथ राधिका भी उठ गयी थी, वहाँ आकर राधिका तो मानो शहर को भूल ही गयी थी, उसने एक बार भी शहर के बारे में नही पूछा और न ही अपने काम के बारे में


बहुत दिनों बाद उसे अपनी भागती दौड़ती जिंदगी में थोड़ा बहुत सुकून मिला था, वरना तो उसने जबसे होश संभाला था, भागा दौड़ी पर ही थी, कभी स्कूल, कभी कॉलेज उसके बाद ट्रेनिंग और फिर डॉक्टर बन कर कभी अस्पताल तो कभी घर, अब कही जाकर उसे इतना आराम मिला था, और अब जाने का समय नजदीक आ गया था, मानव के साथ साथ उसे भी अच्छा नही लग रहा था वहाँ से जाना


लेकिन क्या कर सकते है, वहाँ शहर में भी तो उसके बहुत से मरीज उसकी राह देख रहे होंगे जिसके चलते उसे जाना ही होगा


आशीष और राधिका बाहर चहल कदमी पर चल दिए, क्यूंकि मौसम बेहद सुहाना हो रहा था, आसमान में बादल थे और मधुर हवा चल रही थी,


थोड़ी देर बाद वो लोग वापस आ जाते है,नाश्ते पानी से निबट कर, दीन दयाल जी के साथ मानव और आशीष भी खेतों पर चले जाते है


दोनों बाप बेटे बिना कुछ बोले साथ साथ चल रहे थे, बस मानव ही बाते किए जा रहा था, मानव को देख आशीष को अपने बचपन के दिन याद आ रहे थे, वो भी इसी तरह अपने पिता का हाथ पकड़ कर स्कूल जाया करता था और बाद में गांव की सेर भी किया करता था, वो भी उनके कांधो पर बैठ कर


लेकिन अब न जाने ऐसा क्या हो गया है, कि वो चाह कर भी पहले वाले बाप बेटे नही बन पा रहे है, न जाने कोनसी अना की दीवार उनके बीच आकर बन गयी है, जिसे दोनों में से कोई भी गिराने की हिम्मत नही करता


कोई भी एक दुसरे को समझने का प्रयास नही करता, कही न कही अगर समझ भी जाता है तो उसके सामने स्वीकार नही करता, आशीष को भी थोड़ा दुख होता है, कि उसे पढ़ लिख कर अपने गांव और वहाँ रहने वाले लोगो के लिए कुछ करना चाहिए था, वही दूसरी तरफ दीन दयाल जी भी सोचते है, कि आखिर उनके बेटे ने इतनी मेहनत करके अपने आप को डॉक्टर बनाया है तो वो खुद को इस गांव और गांव वालों के सुपुर्द कैसे कर सकता है


लेकिन दोनों के दोनों इस बात को एक दुसरे के सामने स्वीकार करने से डरते है, या अपनी हार समझते है और इसी के चलते बाप बेटे का रिश्ता अब पहले जैसा नही रहा है


दोनों ख़ामोशी से ही बिना एक दुसरे से कुछ बात किए ही खेतों का दौरा कर लेते है, और फिर एक पेड़ के नीचे पड़ी खाट पर बैठ जाते है


"दादा जी , दादा जी ये एक ही थाली के चट्टे बट्टे मुहावरें का अर्थ क्या होता है, मैंने सुबह इस मुहावरें को देखा था, तब से ही मेरे दिमाग़ में घूम रहा था, सोचा था आपसे शाम को पूछूगा, लेकिन समय कम है और मुहावरें ज्यादा इसलिए अभी ही पूछ लिया ताकि शाम को किसी और मुहावरें का अर्थ जान कर उस पर कहानी लिख दूंगा" मानव ने कहा


"अच्छा किया तुमने पूछ लिया, मन में उठ रहे प्रश्नों को समय से पूछ लेना ही सही रहता है, अन्यथा फिर याद नही रहता वो प्रश्न


चलो बताता हूँ, इस मुहावरें का अर्थ होता है, जब एक से अधिक लोग एक ही प्रवर्ती के होते है और वो प्रवर्ती बुरी हो तो , ऐसे लोगो के लिए ही इस मुहावरें को बनाया गया है


रुको मैं तुम्हे बताता हूँ, कोई कहानी नही बल्कि हकीकत से रूबरू कराता हूँ, और कही और कि बात नही करूंगा अपने ही गांव की बात करूंगा, क्यूंकि यहां रहने वाला बनिया और मुखिया दोनों ही एक ही थाल के चट्टे बट्टे है


दोनों की प्रवर्ती एक जैसी है, गरीब लोगो को परेशान करना, बनिया सूत पर पैसा देता है और पैसा और सूत न लोटा पाने पर बेचारे गांव वालों की ज़मीन हड़प लेता है, उसी के साथ मुखिया इस फिराक में लगा रहता है, कि कब कोई लाचार और मजबूर व्यक्ति उसकी चौखट पर आकर उससे मदद मांगे जिसके बदले में वो उसका या तो घर या ज़मीन या फिर कोई कीमती आभूषण उससे हासिल करले


दोनों का ही मकसद, लाचार, मजबूर और गरीब लोगो को परेशान करना है, उनकी मजबूरी का फायदा उठा कर अपनी जेब भरना है, इसलिए सब गांव वाले उन्हें एक ही थाली का चट्टा बट्टा कह कर पुकारते है, दोनों की ही नज़रे बेचारे गांव वालों की ज़मीनो और घरों पर ही टिकी रहती है


अब समझ आ गया होगा बेटा तुम्हे, इस मुहावरें का अर्थ "दीन दयाल जी ने कहा


"जी दादा जी समझ गया " मानव ने कहा


उसके बाद वो तीनो वही आराम करने लेट गए, आशीष को भी वहाँ अच्छा लग रहा था


मुहावरों की दुनिया हेतु 






   11
3 Comments

Gunjan Kamal

13-Feb-2023 11:18 AM

बेहतरीन

Reply

अदिति झा

11-Feb-2023 12:00 PM

Nice 👌

Reply

Varsha_Upadhyay

10-Feb-2023 08:53 PM

Nice

Reply